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कविता

हल्लो राजा

राकेश रंजन


हल्लो राजा !
कभी-कभी तो कठिन धूप में
चल्लो राजा !
कभी-कभी तो चिंता-भय से
गल्लो राजा !
कभी-कभी तो जठरागिन में
जल्लो राजा !

जब तिनके-भर सुख की खातिर
स्याह जंगलों-जैसे दुक्खों से जुज्झोगे
तब बुज्झोगे
परजा होना खेल नहीं है
किसी जनम में
इसका सुख से मेल नहीं है !

मैंने पूछा :
राजा, कैसी है तुकबंदी
राजा बोले :
बेहद गंदी !

 


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